Vaidyanath Dham: देश का इकलौता ज्योतिर्लिंग, जिसके शिखर पर त्रिशूल नहीं पंचशूल है! जहां ‘मणि’ से होता जलाभिषेक!
वायद्यनाथ धाम, जो झारखंड के देवघर जिले में स्थित है, भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसकी एक अनूठी विशेषता है—इसके शिखर पर त्रिशूल नहीं, बल्कि ‘पंचशूल’ स्थापित है। यह विशेषता इसे अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों से अलग बनाती है।
पंचशूल का महत्व और मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पंचशूल को सुरक्षा कवच के रूप में देखा जाता है। कहा जाता है कि रावण ने लंका के चारों कोनों पर पंचशूल का निर्माण करवाया था, जिसे राम के लिए तोड़ना कठिन था। इसी प्रकार, रावण ने इस सुरक्षा कवच को बैद्यनाथ मंदिर के शिखर पर भी स्थापित किया, ताकि मंदिर पर कोई प्राकृतिक आपदा न आ सके।
धर्माचार्यों का मानना है कि पंचशूल के दर्शन मात्र से ही भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं। यह मानव शरीर के पांच विकार—काम, क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या—के नाश का प्रतीक भी माना जाता है।
मणि से जलाभिषेक की परंपरा
बैद्यनाथ धाम में जलाभिषेक की एक विशेष परंपरा है, जिसमें श्रद्धालु मणि से जलाभिषेक करते हैं। यह परंपरा मंदिर के इतिहास और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी हुई है, जो भक्तों के लिए एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है।
रावण से जुड़ी कथा

बैद्यनाथ धाम की स्थापना से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है, जिसमें रावण भगवान शिव को कैलाश पर्वत से लंका ले जाना चाहता था। वह कठिन तपस्या करता है और भगवान शिव से वरदान प्राप्त करता है। रावण ने शिवलिंग को लंका ले जाने के दौरान देवघर में एक ग्वाले बैजू को शिवलिंग पकड़ने को कहा, और इसी कारण शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया। इसलिए इसे रावणेश्वर धाम भी कहा जाता है।
बैद्यनाथ धाम की यात्रा विशेष रूप से सावन माह में अत्यधिक लोकप्रिय है, जब लाखों श्रद्धालु 105 किलोमीटर दूर भागलपुर के सुल्तानगंज से जल लेकर पैदल यात्रा करते हैं और बाबा के जलाभिषेक में भाग लेते हैं। (
इस प्रकार, बैद्यनाथ धाम न केवल अपनी धार्मिक महिमा के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी अनूठी विशेषताओं और परंपराओं के कारण यह एक अद्वितीय तीर्थ स्थल है।