प्रयागराज : महाकुंभ के दौरान जूना अखाड़े में बड़ी संख्या में लोगों ने नागा साधु और संन्यासिनियों के रूप में दीक्षा ली.

Mahakumbh Juna Akhara initiation process

प्रयागराज के महाकुंभ में जूना अखाड़े में बड़ी संख्या में लोगों द्वारा नागा साधु और संन्यासिनियों के रूप में दीक्षा लेना भारतीय आध्यात्मिक और धार्मिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। नागा साधु अपनी कठिन तपस्या, अद्वितीय जीवनशैली और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध होते हैं। जूना अखाड़ा, जो भारत के सबसे प्रमुख और प्राचीन अखाड़ों में से एक है, महाकुंभ जैसे पवित्र अवसरों पर दीक्षा प्रक्रिया का आयोजन करता है।

नागा साधुओं और जूना अखाड़े की दीक्षा प्रक्रिया के बारे में जानना बहुत रोचक है। यहाँ विस्तृत जानकारी दी गई है:

जूना अखाड़ा:

  • जूना अखाड़ा भारत के 13 प्रमुख अखाड़ों में से एक है। इसकी स्थापना 7वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा मानी जाती है।
  • यह अखाड़ा primarily नागा साधुओं के लिए प्रसिद्ध है, जो शिव भक्त होते हैं।

नागा साधुओं की पहचान:

  • ये साधु पूर्ण रूप से भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर देते हैं।
  • वे अक्सर बिना वस्त्र के रहते हैं और शरीर पर राख मलते हैं, जिसे भस्म कहते हैं।
  • उनके बाल जटाओं के रूप में लंबे होते हैं, और वे शस्त्र जैसे त्रिशूल रखते हैं।

दीक्षा प्रक्रिया:

  1. गुरु चयन:
    • साधु बनने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को पहले एक गुरु का चयन करना पड़ता है।
  2. ब्रह्मचारी जीवन:
    • दीक्षा से पहले दीक्षित व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण की शिक्षा दी जाती है।
  3. दीक्षा अनुष्ठान:
    • पवित्र मंत्रों के साथ दीक्षा दी जाती है।
    • संन्यासिन बनने के प्रतीक स्वरूप सिर के बाल मुंडवाए जाते हैं।
    • व्यक्ति अपने पूर्व जीवन से पूर्ण विराम लेता है और अपना नया आध्यात्मिक नाम ग्रहण करता है।
  4. संन्यास की शपथ:
    • दीक्षा लेने वाले व्यक्ति को सांसारिक मोह-माया से मुक्त होने की शपथ दिलाई जाती है।
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संन्यासिनियां (महिला साध्वी):

  • हाल के वर्षों में महिलाएं भी इस परंपरा का हिस्सा बनने लगी हैं।
  • दीक्षा प्रक्रिया पुरुषों की तरह ही होती है, हालांकि उन्हें विशेष साध्वी अखाड़ों में रखा जाता है।

महाकुंभ का महत्व:

  • महाकुंभ धार्मिक साधुओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ अखाड़े अपनी आध्यात्मिक शक्ति का प्रदर्शन करते हैं।
  • नागा साधुओं का शाही स्नान महाकुंभ का मुख्य आकर्षण होता है।

नागा साधुओं और संन्यासिनियों के व्यक्तिगत अनुभव:

नागा साधु और संन्यासिनियां बनने की प्रक्रिया व्यक्तिगत और गहन आध्यात्मिक यात्रा होती है। इस दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो उनके मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक जीवन को पूरी तरह बदल देती हैं।

प्रेरणा और निर्णय:

  • दीक्षा लेने वाले अधिकांश व्यक्ति सांसारिक जीवन से ऊबने या किसी गहरी आध्यात्मिक खोज की वजह से साधु बनना चाहते हैं।
  • कई बार जीवन की कठिनाइयों और मोह-माया से मुक्त होने की इच्छा भी इस निर्णय के पीछे होती है।

जीवनशैली में बदलाव:

  • दीक्षा के बाद नागा साधुओं का जीवन पूरी तरह बदल जाता है।
  • वे नियमित पूजा-पाठ, ध्यान और योग का पालन करते हैं।
  • शारीरिक और मानसिक तप सहने की क्षमता विकसित करनी होती है।

संघर्षपूर्ण अनुभव:

  • नागा साधुओं को मौसम की कठोर परिस्थितियों में बिना वस्त्र के रहना होता है।
  • कभी-कभी जंगलों में या कठिन वातावरण में जीवन व्यतीत करना पड़ता है।
  • समाज से अलगाव और सांसारिक सुखों का त्याग भी एक बड़ी चुनौती होती है।
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महिला संन्यासिनियां:

  • महिलाएं भी अब नागा संन्यासिनी बनने की ओर आकर्षित हो रही हैं।
  • जूना अखाड़ा और अन्य अखाड़े अब महिलाओं को भी दीक्षा देकर साध्वी जीवन अपनाने का अवसर दे रहे हैं।
  • संन्यासिनी बनने वाली महिलाओं को भी पुरुष साधुओं के समान कठिन तपस्या करनी पड़ती है।

शक्तिशाली अनुभव:

  • नागा साधुओं का मानना है कि दीक्षा के बाद उन्हें आत्मिक शांति और दिव्य शक्ति का अनुभव होता है।
  • वे सांसारिक इच्छाओं से मुक्त होकर जीवन के गहरे अर्थ को समझने की दिशा में आगे बढ़ते हैं।

महाकुंभ का आध्यात्मिक महत्व:

  • दीक्षा के बाद नागा साधु महाकुंभ में पवित्र गंगा स्नान करते हैं, जिसे उनके लिए आत्मशुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
  • इस दौरान उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा जागृत होती है और वे शास्त्रों के ज्ञान में आगे बढ़ते हैं।

नागा साधुओं से जुड़ी कई रोचक और प्रेरणादायक कहानियां हैं जो उनकी कठिन तपस्या और अद्वितीय जीवनशैली को दर्शाती हैं। यहां कुछ दिलचस्प किस्से साझा कर रहा हूं:

1. मृत्यु को हराने वाला तपस्वी

कई नागा साधुओं के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कठोर साधना से मृत्यु को भी टालने की क्षमता विकसित कर ली है। ऐसे एक साधु के बारे में कथा प्रचलित है जिन्होंने हिमालय के बर्फीले इलाकों में वर्षों तक बिना भोजन और वस्त्र के ध्यान किया। उनके शरीर पर बर्फ जम गई, लेकिन उनका तप जारी रहा।

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2. अघोरी साधुओं का रहस्य

नागा साधुओं के बीच अघोरी साधुओं की कहानियां भी प्रसिद्ध हैं। ये साधु श्मशान में साधना करते हैं और मान्यता है कि वे आत्मा और शरीर के संबंध को पूरी तरह समझ चुके होते हैं। एक अघोरी साधु की कहानी है जो श्मशान में ध्यान करते समय आत्माओं के भय से कभी विचलित नहीं हुआ।

3. शाही स्नान की परंपरा

महाकुंभ में नागा साधुओं का शाही स्नान बेहद खास होता है। कहा जाता है कि एक बार एक साधु ने गंगा में डुबकी लगाने से पहले तपस्वी मुद्रा में ध्यान लगाकर वर्षा को रोक दिया था। उनके स्नान के बाद ही मौसम साफ हुआ।

4. महिला संन्यासिनी की संघर्ष गाथा

एक साध्वी की कहानी प्रेरणा देती है जिन्होंने अपने पारिवारिक जीवन को छोड़कर नागा संन्यासिनी बनने का कठिन निर्णय लिया। उन्होंने पुरुष साधुओं की तरह कठिन साधना की और एक प्रतिष्ठित अखाड़े की प्रमुख बनीं। उनके अनुशासन और तपस्या की गूंज पूरे साधु समाज में है।

5. नागा साधु का चमत्कारी उपचार

एक साधु के बारे में प्रसिद्ध है कि उन्होंने एक व्यक्ति को केवल भस्म और मंत्रों से गंभीर बीमारी से ठीक किया था। हालांकि विज्ञान इसे मान्यता नहीं देता, लेकिन उस साधु को दिव्य शक्ति प्राप्त होने की मान्यता है।