Raviwaar Holiday : रविवार को क्यों रहती सरकारी दफ्तर और स्कूलों में छुट्टी ? कब मिला था पहली बार छुट्टी ?
रविवार को सरकारी दफ्तर और स्कूलों में छुट्टी होने की परंपरा धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कारणों से जुड़ी हुई है। इसके कुछ मुख्य कारण हैं:
- धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व: रविवार को अक्सर विश्राम का दिन माना जाता है, खासकर ईसाई धर्म में, जहां इसे ‘संडे’ कहा जाता है और यह एक धार्मिक दिन माना जाता है। इस दिन लोग चर्च जाते हैं और अपने परिवार के साथ समय बिताते हैं। इस परंपरा का प्रभाव विभिन्न देशों में देखा जाता है, और कई जगहों पर रविवार को छुट्टी की परंपरा बनी रही है।
- वर्क वीक का अंत: रविवार को छुट्टी देने का एक और कारण यह है कि यह कार्य सप्ताह का अंतिम दिन होता है। इसे लोग आराम करने, परिवार के साथ समय बिताने, और अगले सप्ताह के लिए ऊर्जा जुटाने का दिन मानते हैं।
- समाज और संस्कृति की आदतें: भारत सहित कई देशों में रविवार को छुट्टी की परंपरा बनी हुई है, जिससे लोगों को एक पूरा सप्ताह काम करने के बाद आराम करने का मौका मिलता है। यह दिन पब्लिक सर्विस, शिक्षा और प्रशासनिक कार्यों से थोड़ा अलग होने का अवसर प्रदान करता है।
- शिक्षा क्षेत्र में: स्कूलों में भी रविवार को छुट्टी रखने का कारण यह है कि यह छात्रों को मानसिक और शारीरिक आराम देता है, जिससे वे अगले सप्ताह के लिए तैयार हो पाते हैं।
यह परंपरा समय के साथ विकसित हुई है और अधिकांश देशों में रविवार को सार्वजनिक छुट्टी के रूप में मनाया जाता है।
पहली बार सार्वजनिक छुट्टी देने की परंपरा का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है, और इसका विकास विभिन्न संस्कृतियों और देशों में समय के साथ हुआ। हालांकि, जब हम आधुनिक छुट्टियों की बात करते हैं, तो विशेष रूप से रविवार को छुट्टी देने की परंपरा 19वीं सदी के आसपास स्थापित हुई।
1. प्रारंभिक दौर (पुरानी सभ्यताएँ):
प्राचीन सभ्यताओं में, जैसे मेसोपोटामिया और मिस्र में, कुछ छुट्टियाँ धार्मिक और सांस्कृतिक कारणों से मनाई जाती थीं। इनमें प्राचीन धार्मिक त्योहार और विश्राम के दिन शामिल थे, जैसे शनि दिवस (Saturday) का महत्व या यहूदियों में शब्बाथ का दिन।
2. ईसाई धर्म का प्रभाव (4वीं सदी):
जब रोमन सम्राट कोंस्टेंटाइन ने 321 ईस्वी में रविवार को “विश्राम दिवस” के रूप में घोषित किया, तो यह दिन ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र दिन बन गया और इसे “संडे” कहा गया। इस दिन चर्च जाने की परंपरा स्थापित हुई और कई जगहों पर इसे विश्राम का दिन माना जाने लगा। इससे सार्वजनिक छुट्टियों की परंपरा का आरंभ हुआ।
3. औद्योगिक क्रांति (19वीं सदी):
औद्योगिक क्रांति के दौरान, खासकर 19वीं सदी में, पश्चिमी देशों में मजदूरों के हक में सुधार हुआ और 1840 के दशक में पहला प्रयास किया गया कि सप्ताह में एक दिन मजदूरों को आराम का अवसर मिले। अमेरिका में 1840 में सबसे पहले रविवार को छुट्टी देने की परंपरा स्थापित हुई, और बाद में यह यूरोप और अन्य देशों में भी फैल गई।
4. भारत में सार्वजनिक छुट्टियाँ:
भारत में अंग्रेज़ों के शासन के दौरान कुछ छुट्टियाँ घोषित की गईं, लेकिन स्वतंत्रता के बाद, भारतीय सरकार ने सार्वजनिक छुट्टियों का एक स्पष्ट रूप से निर्धारण किया। भारत में रविवार को सरकारी दफ्तरों और स्कूलों में छुट्टी देने की परंपरा भी इसी समय विकसित हुई। इसके अलावा, राष्ट्रीय त्योहारों जैसे गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, और महात्मा गांधी जयंती को भी सार्वजनिक छुट्टियाँ घोषित की गईं।
इस प्रकार, पहली बार सार्वजनिक छुट्टी देने की परंपरा धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन के साथ समय के साथ विकसित हुई।
पहली बार छुट्टी देने की परंपरा का इतिहास बहुत ही दिलचस्प और विविधतापूर्ण रहा है। यह परंपरा प्राचीन संस्कृतियों, धार्मिक प्रथाओं, और औद्योगिक क्रांति के साथ धीरे-धीरे विकसित हुई।
प्राचीन सभ्यताओं में छुट्टियाँ:
- मेसोपोटामिया और मिस्र में भी कुछ धार्मिक अवसरों पर लोगों को विश्राम का समय मिलता था। प्राचीन मिस्र में रानी और अन्य उच्च वर्ग के लोग त्योहारों के दौरान छुट्टियां मनाते थे, जबकि साधारण लोग विभिन्न कृषि और धार्मिक त्योहारों के समय आराम करते थे।
- यहूदी धर्म में शब्बाथ (Shabbat) को विश्राम का दिन माना जाता था, जो शुक्रवार शाम से लेकर शनिवार शाम तक होता था। यह एक धार्मिक परंपरा थी, जिसमें विश्राम और पूजा का महत्व था।
रोमन साम्राज्य और ईसाई धर्म का प्रभाव:
- रोमन सम्राट कोंस्टेंटाइन ने 321 ईस्वी में रविवार को विश्राम दिवस (Day of Rest) के रूप में घोषित किया। यह ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र दिन था, क्योंकि ईसाई धर्म में यह दिन यीशु मसीह के पुनर्जीवित होने का दिन माना जाता है।
- रविवार को विश्राम देने की परंपरा उस समय केवल धार्मिक स्थलों तक सीमित थी, लेकिन धीरे-धीरे यह समाज में फैलने लगी।
औद्योगिक क्रांति और श्रमिक अधिकार:
- औद्योगिक क्रांति (19वीं सदी) के दौरान, यूरोप और अमेरिका में मजदूरों के लिए काम करने की परिस्थितियाँ कठिन थीं। लंबी घंटों की शिफ्ट के कारण श्रमिकों की सेहत पर बुरा असर पड़ने लगा था।
- इस समय, मजदूरों के आंदोलन और श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष ने सप्ताह में एक विश्राम दिवस की मांग की। अमेरिका में 1840 के दशक में पहली बार सप्ताह में एक दिन विश्राम देने की परंपरा का आरंभ हुआ।
- ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों में भी इस तरह की छुट्टियों की शुरुआत हुई। विशेष रूप से, कानूनी छुट्टियाँ (legal holidays) 19वीं सदी के अंत तक लागू की गईं।
भारत में सार्वजनिक छुट्टियाँ:
- भारत में, अंग्रेजों के शासन के दौरान रविवार को सरकारी दफ्तरों और स्कूलों में छुट्टी की परंपरा शुरू हुई थी, और इसके बाद स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी यह परंपरा जारी रही।
- स्वतंत्रता के बाद, भारतीय सरकार ने छुट्टियों का एक निर्धारित कैलेंडर तैयार किया, जिसमें राष्ट्रीय त्योहारों जैसे गणतंत्र दिवस (26 जनवरी), स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त), और महात्मा गांधी जयंती (2 अक्टूबर) को सार्वजनिक छुट्टियाँ घोषित की गईं।
सार्वजनिक छुट्टियों का उद्देश्य:
- श्रमिकों के अधिकारों का संरक्षण: मजदूरों को आराम देने और उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए सार्वजनिक छुट्टियों की शुरुआत की गई।
- सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व: छुट्टियाँ समाज को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से जोड़ने का एक तरीका हैं, ताकि लोग अपने परिवार के साथ समय बिता सकें और पूजा-पाठ, त्योहार आदि में भाग ले सकें।
- समाज में संतुलन बनाए रखना: सप्ताह में एक दिन का विश्राम समाज में संतुलन बनाए रखने और कार्य के दबाव को कम करने के लिए जरूरी था। इससे लोग अगले सप्ताह की चुनौतियों के लिए तैयार हो पाते थे।
समय के साथ छुट्टियाँ विभिन्न देशों और संस्कृतियों में विकसित होती गईं, और यह आज हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई हैं।